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गुड्डू के बाबूजी का जबाब

प्रिय गुड्डू के माई                        तोहार चिट्ठी मिलल पढ़ के बड़ा खुशी मिलल की सब केव घरे खुश और ठीक बा हमहू इहवा पे ठीकय बाटी तू त बड़ा नराज लागत बाटू हमरे उपर लेकिन तूहू इ जान ल कि दुनिया में अगर केहू के हम अपने जान से ज्यादा जान मानी ला त उ तोहई बाटू हो तू इ कइसे सोच लिहू कि हम तोहके घरवे प्यार करिला. तू इ जान ल कि इहवा पे हम कईसे रहत बाटी उ त हमार जियरय जानत बा. अगर हमार बस रहत त हम कबहु तोहके छोड़ के एतना दूरी आइत हो. उ त का बा कि सबके जिनगी में इ सब अइब करत ह त हमरव और तोहरव जीनगी में बा त आदमी के जीवन जब उ भगवान जी देहले बाटेन त कब तक घरे बइठले चली हो. अउर एक बात बातावा अबही त बड़ा कहत बाटू कि इहवे् प्यार करेला उहवा भूला जाएला त अगर हम घरवे तोहका प्यार करब तब तोहार इ सड़िया और तोहरे लाल के सइकिलावा कइसे आई तनि बातावा त                    उहवा पर माई और बाबू जी के खूब ख्याल करिहा इ ना कि हम ना बाटी घरे त तू उनका ख्याल न करा हम तोहरही भरोसे त आइल बाटी इहवा अउर हा इहवा हमार काम धन्धा बहुत सही चलत बा त हम दूई हजार रूपिया भेजब अपने दूसरे पूरवा के एक जनी जाए वाला बाटेन  ते

गुड्डू के बाबू जी को पत्र

प्रिय गुड्डू के बाबू                           जब से पंजाब गईल बाटा तब से कवनो हाल खबर ना बा जी तोहार लागत बा कि कुल प्यार राउर के इहवे पर बुझाला अउर पंजाब जइते सब भुला जाला हो . एक बात बताई तोहरा तनिको पता बा कि ना हम इहवा पर कैसे कैसे जिनगी काटत बाटी अउर एक राउर बाटी कि कुछ बुझात नइखे. इहवा पर सब ठीक बा. राउर बातई कि सब कैसे बा. काम धन्धा ठीक ठाक चलत बा कि ना. खाना खईले जइहा अच्छे से अबकी जब अइला त शरीरवा में कूछ रहबै न कईल ते तनी खाना पीना पर ध्यान दिहल करा न कि हरदम कमाई पर ही लागल रही एक बात जान लिहअ कि जब शरीरवा रही तबै कमाई होई अउर तबै सब पूछि नही त केव पूछत नाय इहा पर अम्मा बाउ जी के तबियत कभी कभी ना ठीक रहेला एक दिन अम्मा कहत रहनी कि देखा अबकी गुड्डू के बाबू आवेला कि न उ पूछत रहनी कि होली आवत बा त  अइबा कि ना कि उहवे पर होली दिवाली बिताइबा देखा तिव तिवहारे चलि आवल करा आशा लागल रहेला कि अइबा. हमहू तोहरे राह देखत रहीला कि अइना त तनि हमरो मन हरियर होई जाई नही त बस बनअही और खइला मे जिनगी बितत रही. अरे जब भगवान इ शरीरवा बनईले बाटेन त तोहरे के खातिर बा न हो अगर तोहई न अइबा ते हम

पुराने से बेहतर हो नया साल

दोस्तो,            जैसा कि 2019 साल के आखिरी दो दिन ही बचे है फिर हम एक नए साल में प्रवेश कर जाएगे और जीवन में फिर नई चुनौतिया नए लक्ष्य लेकर हम आगे बढ़गे जैसा कि हम सबको विदित है कि हम लोग लगातार जीवन के नए आयामो में आगे बढ़ रहे है तो जाहिर सी बात है कि हमारा लक्ष्य भी लगातार नए तीव्रता की तरफ बढ़ रहा है हम नित नए चुनौतियो का सामना कर रहे है और आगे करते भी रहेगे और इन चुनौतियो का होना भी बहुत ही जरुरी है अगर ये चुनौतियां ही नही रहेगी तो फिर जिन्दगी की रौनक ही नही रहेगी          तो हम 2019 कोे छोड़कर 2020 में जा रहे है तो 2019 की पुरानी बुरी बातो को छोड़कर लेकिन उन बुरी बातो से हमें सीख जरुर लेनी है जिससे यह फायदा होगा कि वही पुरानी गलतिया हम दोबारा नही करे जो हमें पहले की दोस्तो अगर हम अपनी जन्दगी में कुछ भी गलत करते है तो हम ज्यादातर यह सोचते है कि चलो गलती तो हो गई लेकिन हम तब एक बहुत ही बड़ी गलती और कर देते है जो कि उस गलती से हम सबक नही लेते लेकिन अगर हमें जिन्दगी में यह चाहिये कि हम दोबारा उस गलत बात के भुक्तभोगी न बने तो बहुत ही जरुरी काम है कि हम तुरन्त प्रण ले कि आज के बाद

स्वास्थ्य और शिक्षा तक सबकी पहुच आखिर कब?

                        देश में आजकल एक दौर चल रहा है शिक्षा को लेकर जहां एक तरफ हर सरकारी संस्थाओं का नीजीकरण के तरफ सरकार अपना कदम बढ़ा रही है वही शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरत को भी सरकार किसी न किसी रुप में लोगों की पहुच से दूर करने की लगातार कोशिश कर ही रही है               अपने देश में आज भी एक बड़ी जनसंख्या रहती है जिनकी आमदनी इतनी ही है कि वो बस दो जून की रोटी का जुगाड़ कर लेते है या कभी कभी ऐसा होता है कि वो भी नसीब नही होता है उनके लिए बस कमाना खाना ही एकमात्र जरिया होता है जीना है तो कमाना है यदि काम करेगें तभी दो जून की रोटी का जुगाड़ होगा तो ऐसी स्थिति में उन जैसे परिवारो के बच्चो के लिए शिक्षा जैसी चीजे किसी सपने से कम नही होती है उनके दिमाग मे शिक्षा को लेकर कुछ होता ही नही ऐसे परिवार में अगर कोई बच्चा पैदा होता है तो यदि वह पढना चाहे तो कैसे पढ़ेगा यदि सरकारी संस्थाओं की फीस भी प्राईवेट संस्थाओं की तरह आसमान पर पहुचने लगेगी तो               वैसे भी गिने चुने ही संस्थान है जो कि नाम मात्र की फीस लेकर अच्छी शिक्षा प्रदान करते है उनसे अच्छी अच्छी प्रतिभा पैदा होती है अगर इ

प्रयास से कमी का पता भी चलता है

      प्रयास हमें हमारी कमियों से भी रूबरू कराती है यह पता मुझे भी आज एक बहुत ही छोटी सी घटना से हुयी तो मुझे लगा कि आप लोगों से बात करनी चाहिए तो लिख दिया है तो बात यह है कि मेरी हिन्दी की टाईपिंग की गति बहुत ही धीमी और त्रुटिपूर्ण थी जो कि मै लगातार कोशिश के बावजूद इस कमी से उबर नही पा रहा था लेकिन करे भी तो क्या करे बस लगातार यह खोज रहा था कि क्या कमी है कि मुझे वह कमी मिल नही रही है बस विश्वास इतना था कि आज नही तो कल मै इसमें कामयाब जरूर हो जाउगा क्योकी बचपन से यह सुनते आया हू कि अगर मेहनत अनवरत है तो कमी धीरे धीरे ही सही गायब जरूर हो जाती है     तो आज की घटना से आपको रूबरू कराता हू कि मै आज जब मैं टाईपिंग करनी शुरू की तब तो मेरा मन बहुत ही ज्यादा शांत था जिसके फलस्वरूप मेरी गति बहुत ही सही हो रही थी साथ ही साथ होने वाली त्रुटि में भी बहुत ही ज्यादा सुधार था       पहले और आज के प्रयास में बस इतना अंतर था कि आज जब मैं टाईपिंग कर रहा था तब मै बहुत ही शांत दिमाग से कर रहा था अन्य दिन में जब मैं टाईपिंग करता था तो उंगलियां बाद में चलती थी और दिमाग पहले ही भागता रहता था इससे पता चल

लोकतंत्र में सवालों के गोल-मोल जबाव

                     विश्व का सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करते है हम और हमारी सरकारे, पर जब बात वाजिब सवालों का आता है तो क्या हम वो सब हक पाते है जो वास्तव में एक लोकतांत्रिक शासन या देश के लोगो को वाकई मिलना चाहिए । यह एक सोचने वाली बात है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में देश के हक में क्या हो रहा है उसमें जनता को ही बाहर का रास्ता दिखला दिया जा रहा है उसे बस आर्डर के माध्यम से पता चल जाता है कि सरकार यानी की जो बस कुछ लोगो में रह कर जीवन जी रही है उसने आपके लिए कुछ नियम या सौदा कर लिया है आपको कल से उसे मानना है आप चाह कर या तो चुप रहे या चिल्ला ही ले कौन आपकी बात  को सुनने को तैयार है आज के दौर में हर प्रशासन का दुरप्रयोग होने से सरकार नही हिचकती है         हालात यह है कि आम जनता की आवाज तो सुनने का प्रश्न  ही नही बनता और जो कुछ लोग सरकार से आँख में आँखे डालकर सवाल कर ऱहे है उनपर इतनी पाबन्दी लगा दी जा रही है या तो वे चुप हो जाए या कानून के द्वारा या तो जान के डर से अपना मुँह बन्द करने पर मजबूर है        आज दौर में जब रहकर एक एक चीज को देश के विकास के नाम पर निलाम किया जा रहा

आजाद भारत : वास्तव में

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आज अपना देश भारत आजादी के रंग में सराबोर होकर 73 स्वतंत्रता दिवस मना रहा है,आज देश अपने अमर बलिदानियों के कुर्बानी को नमन कर रहा है , आज साथ सी साथ कई बातों पर बात करने के साथ उन पर कठोर कदम लेने की जरूरत है और सोचने की बात है कि क्या हमारे पूर्वजो ने देश को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए वो भी बिना एक पल सोचे उन्होंने देश को अंग्रेजो से आजादी के साथ ही और कई चीजों से भी आजादी का सपना देखा था अंग्रेजो से आजादी तो हमे मिल गयी लेकिन क्या जो सपना उन्होंने देखा था आजादी के बाद के भारत के लिए क्या वह पूरा हुआ या आज भी पिछले 72 सालो से साथ ही साथ आज 73 साल भी हो ही गया देश मे चुनाव होते गए लोग जीतते गए और देश हारता गया क्योंकि देश तो करोड़ो लोगो से बना है और प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री सांसद विधायक तो मात्र कुछ बनते है जो देश की भुखमरी,अशिक्षा, स्वास्थ्य,और प्रदूषण जैसी बातों को अनदेखा ही किये है जिसका परिणाम आज भो सामने है यहां लाखो लोग आज भी भूखे सो रहे है क्या देश को इस भूख से आजादी की जरूरत नही आज भी हालत यह है कि देश के जिम्मेदार पदासीन लोग इनकी भूख हरने के बज