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Showing posts from March, 2019

मैं और मेरी फिटनेस

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अगर कहू की मैं आलसी इंसान हूं । लोग आलसी होते है मैं बहुत ही बड़ा वाला हूं।शरीर अदरक जैसा कही से भी बढ़ रहा है लेकिन मुझे फर्क नही पड़ रहा है कि मैं क्यो बढ़ रहा हूं कही से भी मेरे फिट न होने की वजह है जो कि मुझे भलीभांति पता है फिर भी खुद को फिट होने के लिए कुछ करने के बजाय मेरे पास खुद को सही साबित करने के हजारों बहाने है उसमे पहला जो सबसे बड़ा है वह है मैं चीजो को टालने में बड़ा विश्वास करता हूं । कभी कभी लगता है यार सुबह सूर्योदय से पहले उठना चाहिए लोग कहते भी है कि सुबह उठने से आधा रोग यू ही कट जाता है ।यह बात मुझे बचपन से बताई जा रही है लेकिन मजाल है कि मैं की मैं कभी इस पर अमल कर लू मुझे लगता है ली यह फालतू है क्योंकि रोग तक पता नही लेकिन सुबह ही तो हमे नीद आती है वो भी शानदार वाली, जिसे miss तो हम कर नही सकते कोई और रास्ता हो तो बताओ दूसरी बात आती है जिम जाने की ।तो भाईसाहब मैं बता दू की जिम जाने के लिए चाहिए इच्छाशक्ति जो कि अपनी है बहुत ही कमजोर। सबसे बड़ी बात होती है जब जिम जाने की तो वैसे तो अपना दिमाग काम करना नही चाहता लेकिन इस बात पर वो भी चल जाता है तब अपने पास जिम को

पूर्व सैनिक तेजबहादुर जी का राजनीति में आना

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बनारस में चुनाव काफी दमदार होता ही जा रहा है । अभी किसानों द्वारा मोदी जी के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात कही गयी थी उसी के साथ एक और धमाकेदार घोषणा पूर्व  जवान तेजबहादुर जी द्वारा चुनाव लड़ने को लेकर की गई है बात अगर तेजबहादुर को लेकर की जाए तो यह सुखद होगा कि बनारस की जनता इनको संसद भेजे वो इसलिए नही की वो एक जवान रह चुके है ,उसका कारण यह है कि वो आपके बनारस की आवाज संसद में बखूबी बुलन्द करेंगे क्योकि जो इंसान सेना में रहकर उसके द्वारा हुई ज्यादतियों के खिलाफ बिना डरे मुखर हो सकता है वह आपकी और बनारस के लिए भी पूरे दम खम से लड़ेगा । साथ ही साथ मुझे लगता है कि जवानों को भी संसद में प्रतिनिधित्व मिलना ही चाहिए और जवानों के हक में एक जवान ही उनकी जरूरतों और परेशानियों के बारे में देश को और संसद को बता सकता है तेजबहादुर के बारे में अभी तक यह पता चला है कि वो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे है इसका एक फायदा यह होगा कि वह अपनी बात संसद में बिना किसी दबाव के रख सकते है । सेना से तो बहुत लोग आए लेकिन वो किसी न किसी पार्टी के होकर रह गए उनको जब बात सेना के लिए बोलने की आती है तो वो अपनी जगह ही पक्की क

।।कोई हमसे भी तो पूछो मैं क्या चाहता।।

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पापा चाहते बनू मैं IAS मम्मी चाहती बनू मैं टीचर अरे कोई हमसे भी तो पूछो मै क्या चाहता बहन चाहती बनू मैं पायलट भाई चाहता बनू मैं फौजी अरे कोई हमसे भी तो पूछो मैं क्या चाहता दादा कहते बनो किसान दादी कहती घर रहकर ही कर लो कुछ काम अरे कोई हमसे भी तो पूछो मैं क्या चाहता सब अपनी अपनी राय बताते मुझसे कोई न जानना चाहता अरे हमसे भी तो पूछो मैं क्या चाहता

धीरे-धीरे चुनाव असली मुद्दे की तरफ बढ़ रहा है

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वर्तमान चुनावी परिदृश्य में हर तरफ माहौल गर्म है,देश की दोनों बड़ी पार्टिया अपना अपना दाव खेल रही है। इसी बीच दो बड़ी बात हुई देश मे मिशन 'शक्ति' की सफलता के बाद मोदी जी का राष्ट्र के नाम संदेश और दूसरी राहुल गांधी का न्यूनतम आय देने की घोषणा न्यूनतम आय की घोषणा करके कांग्रेस भी फस गयी है वह घोषणा तो कर दी लेकिन यह बताने में उनके पसीने छूट रहे है कि आखिर इतने पैसे आएंगे कहा से ,दूसरी बात उसे लागू कैसे करेंगे ,इसका कोई वाजिब जबाब नही दे पा रहे है कांग्रेस वाले अब बात आती है मोदी जी की जो राष्ट्र के नाम संदेश देकर मिशन शक्ति के बदौलत एक बार फिर चिर परिचित अंदाज में चुनाव को देशभक्ति ,हिंदुस्तान पाकिस्तान, की तरफ मोड़ने की कोशिश कर रहे है ,लेकिन  DRDO और ISRO कोई आज की संस्था तो है नही कि आज पहली बार उन्होंने कोई परीक्षण किया हो इस परीक्षण पर काम तो पिछले कई सालों से चल रहा था जो अब आकर पूरा हुआ,यह मिशन शक्ति देश की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है तो इसे राजनीतिक मोड़ देने की क्या जरूरत है ,देश के वैज्ञानिक निसंदेह लगातार देश हित मे काम किये है ,जो ये राष्ट्र के नाम संदेस करके

!!तुम्हे बताना भी जरूरी था!!

कुछ कहना तुमसे जरूरी था फिर मिलना तुमसे जरूरी था ये जो तेरे हिस्से प्यार लिए फिर रहा हु मैं तुम्हे बताना भी  जरूरी था उस पीले सूट में तुम कितनी हसीन दिखती थी तुम्हे बताना भी  जरूरी था तुम्हा रे किसी एक भी दिन कॉलेज न आने पर,मैं कितना बेचैन होता था तुम्हे बताना भी तो जरूरी था तुम्हारे साथ वाली बस में जाने को मैं कितनी बसे छोड़ देता था तुम्हे दिखाना भी जरूरी था एकाएक तुम्हारा कॉलेज से गायब हो जाना,मुझे कितना रुलाया था तुम्हे बताना भी  तो जरूरी था अपने एकतरफा प्यार को उसकी मंजिल तक पहुचाना भी जरूरी था ये जो तुम्हारे हिस्से का प्यार लिए फिर रहा हूं मैं तुम्हे बताना भी  जरूरी था ।।

मैं कौन हूं ??

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मैं कौन हूं कभी कभी खुद से जब  मैं पूछता हूं क्या कोई जबाब  पाता हूं जिंदगी में अलग अलग किरदार निभाता हूं हर किसी के लिए अलग अलग बन जाता हूं मैं कौन हूं क्या खुद को जान पाता हूं अपनी माँ के लिए उसका राजा बेटा बन जाता हूं अपने पापा  का दुलारा लाला बन जाता हूं मैं कौन हूं क्या खुद को जान पाता हूं अपनी बहन का शरारती दोस्त बन जाता हूं अपने भाई के लिए खेलने का जरिया बन जाता हूं मैं कौन हूं क्या खुद को जान  पाता हूं दोस्तो के लिए उनका जिगरी यार बन जाता हूं गर्लफ्रेंड के शॉपिंग का क्रेडिट कार्ड बन जाता हूं मैं कौन हूं क्या खुद को जान पाता हूं अपने बॉस के लिए बधुआ मजदूर बन जाता हूं खुद को छोड़कर सबके लिए कुछ न कुछ बन जाता हूं पर काश मैं खुद के लिए कुछ बन पाता मैं कौन हूं ,काश खुद को जान पाता

प्रतियोगियों की सबसे बड़ी परेशानी?

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क्या भइया आप भी सरकारी नौकरी की तैयारी करते है ? या करते थे? तो आज हम इसी परेशान वर्ग की बात कर लेते है। जिसे हम कहते है प्रतियोगी अभ्यर्थी तो भइया क्या है न हम बड़े परेशान है अपने घर वालो से कम लेकिन बाहर वालो से ज्यादा । वो क्या है न हमारे गांव ,पड़ोस और रिश्तेदार है न उनको हमे चैन से रहने देना पसन्द ही नही होता ,जैसे ही मिलते है शांत सी ज़िन्दगी में उंगली शुरू।उ क्या होता है कि ई लोग पूरे मौके की तलाश में होते है जब तुमसे अकेले में मिलेंगे तब तो प्यार भरी बातें ,डंक तो इनका तब निकलता है जब तुम माँ बाप के पास बैठे होंगे तब इनका असली रूप आता है सामने ,तब ई पूछेंगे और बेटा कब आये,अउर अभी तक तैयारी ही कर रहे हो का, उसके बाद इनके किसी न किसी दोस्त का लड़का जरूर कही न कही कलेक्टर बना होता है तब ई बताएंगे कि हमारे फला मित्र के मित्र का लड़का 6 महीने में ही नौकरी में लग गया,तुम चार पांच साल से पढ़ ही रहे हो न इतना कह के ई भाईसाहब लोग तो चल देते है और फिर जो जली भुनी सुनने को मिलती है भाई साहब न, फिर वही माँ बाप जिनका प्यार बरस रहा होता है फिर उनको आ जाता है ego ,भाई साहब फिर जिसके लिए त

चौकीदार तेरे राज में ,बेरोजगार घूमे बाजार में

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चौकीदार शब्द सुनते ही सबसे पहले हमारे जेहन में जो ख्याल आते है वो यह है की ऐसा इंसान जो पूरी ईमानदारी और तल्लीनता से अपनी जिम्मेदारी निभाता है चाहे रात हो या दिन आज कल एक अलग ही नौटंकी दिख रही है सोशल मीडिया में हर बंदा चौकीदार ही बन रहा है,वैसे मैं चौकीदार होने को लेकर कोई ओछी सोच नही रखता की चौकीदार होना गलत है लेकिन भाईसाहब यह जिम्मेदारी आप निजी जिंदगी में कितना निभा रहे है सवाल यह है कि आप एक नागरिक है तो क्या आप अपनी नागरिक रूपी चौकीदारी कर रहे है ।क्या आपने एक भी बार अपने नागरिक धर्म को निभाया,की बस केवल फ़ेसबुक और ट्विटर पर नाम ही बदल रहे है              चलिए थोड़ी बात माननीय लोगो की भी करते है जो बाकी दुनिया के सभी जरूरी मुद्दे भुलाकर रातो रात खुद चौकीदार बन गए और देश को भी चौकीदार बना दिया।एक बात जो इस साल सबसे बड़ा सवाल था रोजगार का ,क्या उसकी चौकीदारी हुई है माननीय चौकीदार जी,आप बताइए इस साल तो आपने भरमार ही कर दिया फॉर्म पर फॉर्म भरवा कर लेकिन आप अपना पिछले पांच साल रोजगार पर कौन सी चौकीदारी की है अपने रोजगार तो दिए नही ,और जब सवाल आता है कि कितने रोजगार मिले आपकी र

भारतीय राजनीति किसान एक विकल्प

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सुबह सुबह एक खबर की किसानो का प्रधानमंत्री जी के विरोध में चुनाव लड़ने का एलान काफी अलग खबर है ! इससे लोग एक बात तो सोचेंगे ही की जनता केवल वोट देने के लिए ही नहीं है वह विकल्प भी है भारतीय राजनीति को ऐसा पेश किया जा रहा है की वर्तमान समय में वर्तमान पार्टी ही सर्वश्रेष्ठ पार्टी है ,और जनता के पास विकल्प का अभाव है ! यह पार्टियों की चाल होती है की खुद के लिए ऐसा माहौल तैयार किया जाये की जनता उनके जाल में फस जाये की उनके सामने कुछ खास लोगो को चुनने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है !अगर आप वर्तमान राजनीति पर गौर करे तो पाते है की जनता के आवाज और मुद्दों को भटका कर कुछ ख़ास पारम्परिक मुद्दे फिर से मुँह उठाए खड़ा है इसी बीच एक खबर काफी नई और उथल पुथल मचाने वाली भी है की जिन कर्नाटक के किसानो ने 2017 में १०० दिन से अधिक समय तक धरना दिया था वो भी सरकार के नाक के नीचे ,लेकिन उनकी बातो को सुनने कोई भी नहीं आया वो अपनी बात प्रधानमंत्री तक पहुँचाना चाहते थे लेकिन जो प्रधानमंत्री जी भाषणों में किसानो के परम हितैषी होने का दावा करते है उन्होंने इनको नजरअंदाज किया आज जो खास बात आयी है की वो सब 11

प्रख्यात समाजवादी :राम मनोहर लोहिया

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सर्वप्रथम महान शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि आज 23 मार्च का दिन शहीद दिवस के साथ एक महान शख्स के जन्म के लिए भी जाना जाता है जिनका नाम राम मनोहर लोहिया था । राम मनोहर लोहिया को एक प्रखर वक्ता ,समाजवादी विचारधारा के प्रवर्तक ,भारतीय राजनीति को नए विचार और दिशा प्रदान करने वाले व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है। शुरू से ही अगर राजनीति में नेताओ के विरोध करने का साहस अगर किसी नेता ने दिखाया है तो लोहिया जी इनमे अग्रणी भूमिका में रहे है। चाहे बात नेहरू जी के 25 हजार रु खर्च करने की हो या इंदिरा जी को गूंगी गुड़िया कहने का साहस की हो या बात महिलाओ के हक में बोलने की की महिलाओं को सती-सीता होने की जरूरत नही है उन्हें द्रौपदी बनना चाहिए एक बात जो आज भी भारतीय राजनीति में सुनने को मिलती है की "जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नही करती" का आह्वान लोहिया जी ने कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए की थी एक बात उत्तरी भारत मे आज भी कही जाती है कि "जब जब लोहिया बोलता है,दिल्ली का तख्ता डोलता है" बात अगर उत्तर प्रदेश के बारे में देखे तो मुलायम सिंह को पहली बार टिकट लोहिया जी ने दि

23 मार्च :शहीद दिवस ,शहीदों को नमन

आज 23 मार्च है यह दिन भारत के इतिहास में शहीदों को नमन करने का दिन है । इस दिन को ही भारत के तीन आजादी के मतवाले भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर चढ़ा दिए थे । आजादी के इन तीन महान क्रांतिकारियों के बलिदान के याद में 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाते है देश को आजादी इन क्रांतिकारियों के इतने महान लोगो के बलिदान के बाद हमे मिली है । इतने महान लोगो ने खुद को कुर्बान करके जो आजादी हमे सौपी है उसका सम्मान करना हर देशवासी का जरूरी कर्तव्य है।हमारा कर्तव्य यह है कि वीर सेनानियों ने जो सपना देखा था देश के लिए उसे हम पूरा करते हुए सदैव वीर और महान क्रांतिकारियों के प्रति हम कृतज्ञ रहे भारत के वीर क्रांतिकारियों के बलिदान को याद करते हुए ,उनको विनम्र श्रद्धांजलि

क्या हम केवल वोटर बन कर रह गए है?

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चुनाव आते ही हमारे देश की पार्टिया हमें केवल वोटर की तरह क्यों समझती है ! ये पार्टिया देश के नागरिको का  जैसे तैसे वोट लेने के लिए ही इस्तेमाल करना चाहती है ! देश की जो ज्यादातर आबादी है उसको हर उम्मीदवार केवल वोटर ही देख रहा है वो यह चाहते है की वोट इनको मिल जाये उससे ज्यादा इन पार्टियों को किसी चीज से मतलब नहीं है  इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है की हमारे जमीनी मुद्दे  भी नेता के मुद्दे बन ही नहीं रहे है देश के किसान की बात कोई कर रहा है। किसान की फसल का उचित दाम कैसे मिलेगा इस पर बात हो रही है।  किसान आत्महत्या क्यों कर रहा है इस पर किसी ने आवाज उठाई की हमने किसान के आत्महत्या जैसे गंभीर समस्या पर काम करूँगा और रही बात वर्तमान सरकार की तो ये लोग तो इतने गंभीर समस्या को शायद समस्या समझते ही नहीं क्योकि किसान के लिए क्या किया इस पर केवल विज्ञापन ही छपते है जमीनी हकीकत क्या है इस पर कोई बात ही नहीं कर रहा है। किसान जीवन बीमा से क्या मिला किसान को आखिर जिन कंपनियों को इसकी जिम्मेदारी दी गयी थी उनका ऑडिट हुआ कि उन्होंने किसान से कितना लिया और कितना भुगतान किया हमारे यहां पा

जल बचाये आने वाले कल के लिए: विश्व जल दिवस

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आज 22 मार्च है,यह वह दिन है जब पूरा विश्व जल को बचाने के लिए एक साथ प्रयास करने पर विचार करता है की जल संरक्षण के लिए क्या किया जाए कि हमारा आने वाला कल जल बिन सून न हो जाये 1992 में ब्राजील में हुए पर्यावरण तथा विकास के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में सर्वप्रथम जल दिवस मनाने पर विचार हुआ।1993 से जल दिवस मनाया जा रहा है । एक दिन साल भर में जल दिवस से क्या होगा लेकिन यह एक दिन इसलिए कि लोगो का ध्यान इस पर जाए और साथ ही साथ इस बात पर भी विचार हो सके कि हम जल संरक्षण के दिशा में और बेहतर क्या कर सकते है, जल को हम कैसे कम से कम प्रदूषित कर सकते है ।कैसे हम कम से कम जल का दोहन कर सकते है जल दिवस का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि कैसे हम अधिकतर जनसंख्या को साफ जल प्रदान कर सकते है यदि अपने परिदृश्य पर नजर दौड़ाये तो हम क्या पाते है कि लोग पानी गंदा करने ,फालतू बहाने ,जल दोहन करने में तो लगे है लेकिन उन्हें जल की संरक्षित करने की कोई चिंता ही नही है ,जल का भंडार सीमित है जिस हिसाब से जनसंख्या बढ़ रही है जल उपलब्धता लगातार घट ही रही है लोगो का अनुमान तो यह है कि आने वाले समय मे जल के लिए विश्व

चुनावी साल: नए मुद्दे क्यो नही

यह साल चुनावी है ,पूरा का पूरा परिवेश चुनावी हो गया है,मैं भी चुनावी, तू भी चुनावी,और ये सारा देश ही चुनावी,चुनाव से बड़ी आशा थी कि अबकी बार लोगो के और देश के मुद्दे कुछ अलग होंगे लेकिन अबकी बार भी देश को निराश ही हाथ लगी देश के मुद्दे जो कुछ दिन पहले तक सर उठा भी रहे थे कही न कही दब से गये ,देश को कही न कही से फिर उन्ही पुराने मुद्दों के तरफ मोड़ दिया गया जबकि कायदे से देखे तो बेरोजगारी देश के लिए बड़ा मुद्दा हो सकता था लेकिन जो बेरोजगार है वही बेरोजगारी को चौकीदारी जैसे बेतुकी बातो के चक्कर मे भूलकर चौकीदार बने फिर रहे है। दूसरा जो विपक्ष है वो चोर साबित करने में भिड़ा पड़ा है आपके लिए कितने यूनिवर्सिटी ,कॉलेज ,स्कूल और रिसर्च सेंटर खोले गए यह सवाल नही हो रहे है सवाल यह हो रहा है कि चुनाव में हिंदू जीत रहा है या मुसलमान आपके लिए कितने एम्स या अन्य हॉस्पिटल बने ,कितने कैंसर सेंटर बने यह हमारा मुद्दा नही है हमारा मुद्दा है कि देश मे वोट का बंदरबाट कैसे हो प्रदूषण बड़ी समस्या बन रही है वो पर्यावरण ,जल,थल जिसका भी हो हम यह सवाल नही पूछ रहे है कि इनके लिए क्या हुआ और क्या होगा अगर हम अपने

वीरान होते गाँव, नीरस होता फगुआ

भारतीय परंपरा का एक बहुत ही सुंदर त्योहार होली आ गयी है ,आज की इस भागमभाग भरी जिन्दंगी में शायद हम इतने आगे निकल गए कि जो त्योहार हमारी पहचान और उल्लास का कारण हुआ करते थे वो अब बस एक छुट्टी का दिन बनकर रह गया है शहरी होली का तो मैं उतने विश्वास से कुछ नही कह सकता लेकिन गाँव की होली ने जो खोया है उस पर काफी कुछ मैंने खुद महसूस किया है पहले लोगो मे होली का एक अलग ही स्तर का उल्लास होता था तब की होली किसी एक खास दिन की मोहताज नही थी तब तो होली महीने भर पहले शुरू होकर महीने भर बाद तक चलती थी । फागुन के महीने में लोग सड़कों पर आते जाते रंगों से रंगे हुए देखे जाना तो एकदम आम था,लोगो मे रंग केवल रंग न होकर उनकी आत्मीय लगाव का प्रतीक होता था,गाँव मे कई दिन पहले से मीटिंग होती थी कि गाँव की कौन कौन सी भाभियो के साथ होली खेलना है ।कौन कौन अबकी बार फगुआ का गीत गायेगा, लोग होली के दिन से कई दिन पहले से ही हर गाँव मे फगुआ के गीतों की गूंज रात को सुनाई देती थी,  गाँव की एक अलग ग्रूप होता था जो होली के लिए भांग कहा से आएगी उसकी व्यवस्था करता था ,लोग आपस मे रंग गुलाल खेलकर शाम को शुरू होता था लोगो क

चुनावी साल: उछलते मुद्दे

चुनाव आते ही एक काम हमारे नेता बड़े ही ईमानदारी से करते है ,वैसे पूरे पांच साल तो ये कोई काम नही करते लेकिन चुनाव आते ही इनका सबसे लोकप्रिय काम होता है अपनी प्यारी और भोली भाली जनता को नए नए जुमले देना।वैसे जुमला सुनकर आप हमें सत्ता पार्टी का दुश्मन समझे उसके पहले मैं बता देना चाहता हूं कि मैं सत्तासीन पार्टी के साथ साथ अन्य सभी पार्टियों और नेताओं की बात कर रहा हूं जो अपने देश मे है अब हो ऐसा रहा भाई की नेताजी लोग आपका ध्यान इतनी सफाई से आपके वास्तविक मुद्दों से हटा रहे है जितनी सफाई से बिल्ली मलाई साफ करती है ,बिल्ली वाले में कुछ कमी हो सकती है लेकिन इनके में तो शत प्रतिशत आउटपुट दे रहे है हम तो ठहरे जनता हमारा क्या हम तो पांच साल अपना परेशानी बेरोजगारी,शिक्षा ,स्वास्थ्य और सफाई अन्य भी मुद्दे है के बारे में चीख पुकार करते है लेकिन जैसे ही चुनाव आता है नेताजी जुमला वाली घुट्टी देते है हम फिर किसी न किसी नेता के प्रवक्ता बने हर गली चौराहे पर मिलते है सत्ता वाली पार्टी का तो पूछो ही मत भाईसाहब जिन मुद्दों को लेकर पांच साल पहले सरकार बनाई उसके बारे में कोई आउटपुट देने के बजाय अबकी बार

सादगी की मिसाल :मनोहर परिक्कर जी

आज भारत के पूर्व रक्षामंत्री मनोहर परिक्कर का जाना भारतीय राजनीति के लिए बहुत बड़ी क्षति है जिसका पूर्ण होने असम्भव है।उनके जीवन की एक घटना का जिक्र करना चाहूंगा एक बार एक ऑडी कार एक स्कूटर से टकरा गई और कार से उतर कर एक नवयुवक कहता है कि मैं गोवा के पुलिस कमिश्नर का बेटा हूं और स्कूटर से उठकर एक युवक बड़ी ही सादगी से कहता है कि मैं गोवा का मुख्यमंत्री हूं ऐसी सादगी के मिसाल थे मनोहर परिक्कर जी , विवादों से अलग रहकर एक रक्षामंत्री के रूप में पहले देश की सेवा की फिर गोवा की जनता की सेवा अंतिम सांस तक करते रहे ऐसे नेता आज के परिवेश में बहुत ही कम मिलते है । नेताओ को इनसे सीखने की जरूरत है कि विवादों से दूर रहकर देश सेवा कैसे की जाती है माननीय परिक्कर जी हमेशा देश के इतिहास में एक सादगी पूर्ण और उन्नतिशील नेता के रूप में याद किये जायेंगे अंत मे आपको भावपूर्ण श्रधांजलि

चुनाव और भारतीय किसान

हमारे देश मे वर्तमान समय मे अगर कुछ जोर शोर से चल रहा है तो वो चुनाव ही है ,बाकी चीजे तो अभी कुछ दिनों के लिए एक तरफ हो गयी है । बस हर पार्टी हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए वादों की पोटली फेंक रहा है इन्ही वादों की पोटली का पिछले कई सालों से या यूं कहे कि जब से चुनाव हो रहे है तब से किसान भी एक मुद्दे की तरह ही रहा है। जिसका सभी ने इस्तेमाल ही किया है वो न तो तब खुशहाल हुआ न ही अब है ।यह एक ऐसा प्राणी है जिसका चुनाव के तुरंत पहले सबको याद आती है लेकिन जैसे ही चुनाव बीतता है फिर इनका हाल वही हो जाता है कि 'आप कौन' भारत की बहुत बड़ी आबादी किसान है अगर नही भी है तो एक बड़ी जनसंख्या उससे किसी न किसी रूप में जुड़ी है।फिर भी किसान इतना दीन हीन क्यो है,क्यो इनको केवल वोट के लिए ही याद किया जाता है,क्यो ये नेता उनके वोट लेकर उन्ही को दरकिनार कर देते है। क्यो किसान के दर्द को कोई सरकार न आज तक सुन पाई और न ही उनके दर्द को खत्म करने का कोई उपाय किसी सरकार ने नही किया इसका एक कारण जो मुझे लगता है वो यह है कि किसान संगठित नही है वह जाति ,मजहब,समुदाय और धर्म जैसी चीजों में फंस कर

चुनावी साल में रोजगार का सवाल

जैसा कि चुनाव की घोषणा हो गयी है और एक अहम सवाल अबकी चुनाव को जरूर प्रभावित करेगा जो है 'रोजगार' का सवाल जब वर्तमान सरकार सत्ता में आई तो सभी सवालों में एक सबसे ज्यादा जो लुभाने वाला मुद्दा था वो रोजगार का भी था, जिसका इन लोगो ने भरपूर तरीके से फायदा उठाया, लेकिन वही सवाल अब इनपर भी आ गया है कि 2014 में जिस मुद्दे को इन्होंने भुनाया अब उसका ये क्या जबाब देंगे अगर आप इकोनॉमिक टाइम्स और NSSO के रिपोर्ट पर ध्यान दे तो पाते है कि बेरोजगारी की पिछले कई सालों में सबसे ज्यादा 2017-18 में है ,जो इस सरकार को मुश्किल में डाल सकती है वर्तमान में युवा शक्ति जिसका प्रधानमंत्री जी भी बराबर जिक्र करते है कि ये राष्ट्र की शक्ति है वो सबसे ज्यादा परेशान किसी से है तो वह बेरोजगारी ही है, यह माना जा सकता है कि हर किसी को सरकारी नौकरी नही दी जा सकती लेकिन अन्य सेक्टरों में भी नौकरियां बढ़ने के बजाय लगातार घट ही रही है जो इस बार के चुनाव का मुद्दा कही न कही होगा इस सरकार ने पूरी कोशिश की है कि रोजगार कितना आया या गया इसका आंकड़ा न बताना हो यदि रोजगार बढ़े होते तो जाहिर सी बात है सरकार उसका क्रेडिट

World consumer right day :आपका अधिकार

आज विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस है आखिर क्या है उपभोक्ता अधिकार खरीदी गई किसी वस्तु ,सेवा और उत्पाद में हुई किसी कमी या हानि के बदले हमे जो कानूनी संरक्षण प्राप्त होता है वही उपभोक्ता अधिकार है आज परिवेश में उत्पादों और सेवाओं में बढ़ोत्तरी बड़ी ही रफ्तार से हो रही है । नित दिन नए नए उत्पाद बाजार में आ रहे है ,उनमे से कुछ तो हमारे और आपके लिए अच्छे साबित होते है और कुछ उत्पाद खराब होने की वजह से हमारा बहुत ही नुकसान करवा बैठते है । यह नुकसान कभी कभी इतना बड़ा होता है कि उससे अपना बहुत कुछ गवा बैठते है आज के दौर में हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में उपभोक्ता तो जरूर है ।वह जब कोई सेवा को खरीदता है तो उसके बदले में वह पैसे खर्च करता है और बदले में वह उस सेवा से पूर्णतः संतुष्टि चाहता है,लेकिन कभी कभी ऐसा होता है वह जो समान या सेवा ख़रीदता है वह खराब निकलती है तब उपभोक्ता के सामने समस्या यह होती है कि वह इसकी शिकायत कहा करे पहले तो वह उस कंपनी या फर्म से शिकायत करता है कि उसने जो उत्पाद लिया वह उसके मांग के हिसाब से खरा नही है यदि वह कंपनी या फर्म उसे सही कर दे तो कोई बात नही ,लेकिन बहुत बा

किसान

।।कैसा है श्मशान देख ले चल मेरा खलिहान देख ले अगर देखना है मुर्दे को चलकर एक किसान देख ले सर्वनास का सर्वे कर कर के पटवारी तू धनवान देख ले फिर अंगूठा टिकाता जगह जगह सेठ तू मेहरबान देख ले मरहम में नमक रगड़ते सरकारी एहसान देख ले राम और राज दोनो रूठे है बस बेबस मुस्कान देख ले कुर्की की डिक्री पर अंकित तू गिरता मकान देख ले सम्मन मिला है कचहरी से अधिग्रहण का फरमान देख ले तस्वीर के पर झाक कर बेबस और लाचार किसान देख ले नेता जी के भाषण वाला रोज मरता किसान देख ले आमदनी दुगना करने वाला भाषण का फरमान देख ले देखना है भारत तुझको आ बेबस और लाचार गांव का किसान देख ले ।। Copied

चुनावी साल :वोट की चोट जरूर करे

जैसा कि सबको पता ही है कि चुनावी साल में चुनाव होने का विगुल बज चुका है । लोकतंत्र का सबसे मजबूत हथियार आपके हाथ मे है,उसका उपयोग आपको अपने विवेक से अपने आने वाले भविष्य के लिए करना है ,अब निर्भर आप पर करता है कि आप इसे कितना सक्रियता और सावधानी से अपने सबसे मजबूत हथियार का उपयोग करते है चुनाव तिथि की घोषणा होने के साथ है हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी पूरे देश से आह्वान किया है कि देश के सभी वोटर नागरिक अधिक से अधिक संख्या में वोट करे ,इन्ही की बातों के साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लोगो से अधिक से अधिक  संख्या में वोट करने की अपील की है । लोगो मे वोट को लेकर एक भ्रांति फैली हुई है कि वोट देकर हम क्या बदल लेंगे। जो वर्तमान में है उसी जैसा कोई और आ जायेगा बस चेहरा बदल जायेगा काफी हद तक पिछली सरकारो को देखे तो यह कहना भी ज्यादा गलत नही है कि हम क्या बदल लेंगे,लेकिन हम अकेले तो नही बदल सकते ,पर जब हम एक साथ किसी के सामने खड़े हो तो जो चाहे वो बदल सकते है। क्योंकि हम आप को पांच साल में एक ही बार मौका होता है कि हम अपनी शक्ति दिखाए,तो इतने बड़े मौके का पूरा लाभ उठाएं दूसरी बात

स्मोकिंग को गुड बॉय कहे

आज नो स्मोकिंग डे है । हर साल स्मोकिंग जैसी जानलेवा बुराई को खत्म करने के लिए जागरूकता फैलाने के लिए मार्च माह के दूसरे बुधवार को 'नो स्मोकिंग डे' मनाया जाता है आज के परिदृश्य पर नजर डाले तो हम पाते है कि आज स्मोकिंग जैसी बुराई की गिरफ्त में देश का युवा पीढ़ी बड़ी ही आसानी से आ रहा है । देश की युवा पीढ़ी  खुद को पहले तो शौकिया शुरू कर रहे है फिर टाइम बीतने के साथ कब यह आदत बन जाती है उन्हें भी पता नही चलता , और अधिकतर लोग इसकी गिरफ्त में इस चक्कर मे आ जाते है क्योंकि समाज मे एक झूठ का प्रचार है कि नशा मानसिक थकान को कम करता है जिसके चक्कर मे हालात ये है कि हर कोई मानसिक थकान और टेंशन के नाम पर इस बुराई को पूरे जोर शोर से अपना रहा है । हम आप अगर ध्यान दे तो पाते है कि इसके बारे में जागरूकता न होने के कारण लोग सांस की बीमारी,फेफड़े की बीमारी और चेस्ट कैंसर जैसी बीमारी के चपेट में आसानी से आ जाते है । ये बीमारिया ऐसी है कि अगर एक को होती है तो प्रभावित पूरा परिवार ही होता है कुछ न सही तो आर्थिक रूप से परेशान तो हो ही जाता है अब स्थिति ऐसी है कि अपना पर्यावरण वैसे ही इतना धूल और धुं

स्वच्छता: जरूरत भी और जिम्मेदारी भी

स्वच्छता का सीधा संबंध अपने परिवेश के साफ सफाई से है । अपने परिवेश को साफ सुथरा रखना हर एक नागरिक की जिम्मेदारी है।हम जिस परिवेश में रह रहे है अगर वो परिवेश गंदगी से भरा है तो जाहिर सी बात है कि वो गंदगी हम लोगो ने ही फैलाया होगा ,तो साफ सफाई की जिम्मेदारी भी हमारी है । हमे अपने आसपास ऐसे लोग आसानी से मिल जाते है जो गंदगी फैलाते समय तो नही ध्यान देंगे लेकिन बात जब सफाई की आती है तो वो ज्ञान जरूर दे देंगे कि ये काम तो सरकार का है।यह कहने में जरा भी संकोच नही करते ये काम तो सरकार का है लेकिन उनको कौन बताये की गंदगी फैलाने का काम किसने आपको दिया है ।सीधी सी बात है अगर हम अपने आसपास गंदगी फैलाते है तो उससे जो नुकसान होगा वो भी हमारा ही होगा उससे जो भी प्रदूषण रूपी गंदगी निकलेगी वो हमें और आपको ही प्रभावित करेगी एक नागरिक के तौर पर हमारी जिम्मेदारी है कि हम कम से कम अपने आसपास साफ सुथरा रखे तो देश तो अपने आप साफ हो जाएगा बाकी सरकार भी अपने स्तर से प्रयास कर ही रही और अगर हम उसका साथ देंगे तो वाकई भारत स्वच्छ हो ही जायेगा सरकार को एक जिम्मेदारी निभानी होगी जो कूड़ा करकट शहरों से निकालकर ये