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Showing posts from 2019

पुराने से बेहतर हो नया साल

दोस्तो,            जैसा कि 2019 साल के आखिरी दो दिन ही बचे है फिर हम एक नए साल में प्रवेश कर जाएगे और जीवन में फिर नई चुनौतिया नए लक्ष्य लेकर हम आगे बढ़गे जैसा कि हम सबको विदित है कि हम लोग लगातार जीवन के नए आयामो में आगे बढ़ रहे है तो जाहिर सी बात है कि हमारा लक्ष्य भी लगातार नए तीव्रता की तरफ बढ़ रहा है हम नित नए चुनौतियो का सामना कर रहे है और आगे करते भी रहेगे और इन चुनौतियो का होना भी बहुत ही जरुरी है अगर ये चुनौतियां ही नही रहेगी तो फिर जिन्दगी की रौनक ही नही रहेगी          तो हम 2019 कोे छोड़कर 2020 में जा रहे है तो 2019 की पुरानी बुरी बातो को छोड़कर लेकिन उन बुरी बातो से हमें सीख जरुर लेनी है जिससे यह फायदा होगा कि वही पुरानी गलतिया हम दोबारा नही करे जो हमें पहले की दोस्तो अगर हम अपनी जन्दगी में कुछ भी गलत करते है तो हम ज्यादातर यह सोचते है कि चलो गलती तो हो गई लेकिन हम तब एक बहुत ही बड़ी गलती और कर देते है जो कि उस गलती से हम सबक नही लेते लेकिन अगर हमें जिन्दगी में यह चाहिये कि हम दोबारा उस गलत बात के भुक्तभोगी न बने तो बहुत ही जरुरी काम है कि हम तुरन्त प्रण ले कि आज के बाद

स्वास्थ्य और शिक्षा तक सबकी पहुच आखिर कब?

                        देश में आजकल एक दौर चल रहा है शिक्षा को लेकर जहां एक तरफ हर सरकारी संस्थाओं का नीजीकरण के तरफ सरकार अपना कदम बढ़ा रही है वही शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरत को भी सरकार किसी न किसी रुप में लोगों की पहुच से दूर करने की लगातार कोशिश कर ही रही है               अपने देश में आज भी एक बड़ी जनसंख्या रहती है जिनकी आमदनी इतनी ही है कि वो बस दो जून की रोटी का जुगाड़ कर लेते है या कभी कभी ऐसा होता है कि वो भी नसीब नही होता है उनके लिए बस कमाना खाना ही एकमात्र जरिया होता है जीना है तो कमाना है यदि काम करेगें तभी दो जून की रोटी का जुगाड़ होगा तो ऐसी स्थिति में उन जैसे परिवारो के बच्चो के लिए शिक्षा जैसी चीजे किसी सपने से कम नही होती है उनके दिमाग मे शिक्षा को लेकर कुछ होता ही नही ऐसे परिवार में अगर कोई बच्चा पैदा होता है तो यदि वह पढना चाहे तो कैसे पढ़ेगा यदि सरकारी संस्थाओं की फीस भी प्राईवेट संस्थाओं की तरह आसमान पर पहुचने लगेगी तो               वैसे भी गिने चुने ही संस्थान है जो कि नाम मात्र की फीस लेकर अच्छी शिक्षा प्रदान करते है उनसे अच्छी अच्छी प्रतिभा पैदा होती है अगर इ

प्रयास से कमी का पता भी चलता है

      प्रयास हमें हमारी कमियों से भी रूबरू कराती है यह पता मुझे भी आज एक बहुत ही छोटी सी घटना से हुयी तो मुझे लगा कि आप लोगों से बात करनी चाहिए तो लिख दिया है तो बात यह है कि मेरी हिन्दी की टाईपिंग की गति बहुत ही धीमी और त्रुटिपूर्ण थी जो कि मै लगातार कोशिश के बावजूद इस कमी से उबर नही पा रहा था लेकिन करे भी तो क्या करे बस लगातार यह खोज रहा था कि क्या कमी है कि मुझे वह कमी मिल नही रही है बस विश्वास इतना था कि आज नही तो कल मै इसमें कामयाब जरूर हो जाउगा क्योकी बचपन से यह सुनते आया हू कि अगर मेहनत अनवरत है तो कमी धीरे धीरे ही सही गायब जरूर हो जाती है     तो आज की घटना से आपको रूबरू कराता हू कि मै आज जब मैं टाईपिंग करनी शुरू की तब तो मेरा मन बहुत ही ज्यादा शांत था जिसके फलस्वरूप मेरी गति बहुत ही सही हो रही थी साथ ही साथ होने वाली त्रुटि में भी बहुत ही ज्यादा सुधार था       पहले और आज के प्रयास में बस इतना अंतर था कि आज जब मैं टाईपिंग कर रहा था तब मै बहुत ही शांत दिमाग से कर रहा था अन्य दिन में जब मैं टाईपिंग करता था तो उंगलियां बाद में चलती थी और दिमाग पहले ही भागता रहता था इससे पता चल

लोकतंत्र में सवालों के गोल-मोल जबाव

                     विश्व का सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करते है हम और हमारी सरकारे, पर जब बात वाजिब सवालों का आता है तो क्या हम वो सब हक पाते है जो वास्तव में एक लोकतांत्रिक शासन या देश के लोगो को वाकई मिलना चाहिए । यह एक सोचने वाली बात है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में देश के हक में क्या हो रहा है उसमें जनता को ही बाहर का रास्ता दिखला दिया जा रहा है उसे बस आर्डर के माध्यम से पता चल जाता है कि सरकार यानी की जो बस कुछ लोगो में रह कर जीवन जी रही है उसने आपके लिए कुछ नियम या सौदा कर लिया है आपको कल से उसे मानना है आप चाह कर या तो चुप रहे या चिल्ला ही ले कौन आपकी बात  को सुनने को तैयार है आज के दौर में हर प्रशासन का दुरप्रयोग होने से सरकार नही हिचकती है         हालात यह है कि आम जनता की आवाज तो सुनने का प्रश्न  ही नही बनता और जो कुछ लोग सरकार से आँख में आँखे डालकर सवाल कर ऱहे है उनपर इतनी पाबन्दी लगा दी जा रही है या तो वे चुप हो जाए या कानून के द्वारा या तो जान के डर से अपना मुँह बन्द करने पर मजबूर है        आज दौर में जब रहकर एक एक चीज को देश के विकास के नाम पर निलाम किया जा रहा

आजाद भारत : वास्तव में

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आज अपना देश भारत आजादी के रंग में सराबोर होकर 73 स्वतंत्रता दिवस मना रहा है,आज देश अपने अमर बलिदानियों के कुर्बानी को नमन कर रहा है , आज साथ सी साथ कई बातों पर बात करने के साथ उन पर कठोर कदम लेने की जरूरत है और सोचने की बात है कि क्या हमारे पूर्वजो ने देश को आजादी दिलाने के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए वो भी बिना एक पल सोचे उन्होंने देश को अंग्रेजो से आजादी के साथ ही और कई चीजों से भी आजादी का सपना देखा था अंग्रेजो से आजादी तो हमे मिल गयी लेकिन क्या जो सपना उन्होंने देखा था आजादी के बाद के भारत के लिए क्या वह पूरा हुआ या आज भी पिछले 72 सालो से साथ ही साथ आज 73 साल भी हो ही गया देश मे चुनाव होते गए लोग जीतते गए और देश हारता गया क्योंकि देश तो करोड़ो लोगो से बना है और प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री सांसद विधायक तो मात्र कुछ बनते है जो देश की भुखमरी,अशिक्षा, स्वास्थ्य,और प्रदूषण जैसी बातों को अनदेखा ही किये है जिसका परिणाम आज भो सामने है यहां लाखो लोग आज भी भूखे सो रहे है क्या देश को इस भूख से आजादी की जरूरत नही आज भी हालत यह है कि देश के जिम्मेदार पदासीन लोग इनकी भूख हरने के बज

उत्तर प्रदेश

मैं उत्तर प्रदेश हूं भारत के संघ राज्यो में सबसे बड़ा स्टेट हूं हा मैं उत्तर प्रदेश हूं जहां एक बेटी की अस्मिता लूट ली जाती है और सरकार अपराधी को बचाती है वही कमजोर सा प्रदेश हूं हा मैं उत्तर प्रदेश हूं जहा नारी सम्मान के बड़े बड़े होर्डिंग लगते है दिल्ली से नेता नारी सम्मान पर ज्ञान देते है वही बड़ी बड़ी रैलियों का प्रदेश हूं मैं उत्तर प्रदेश हूं यहां घायल को ही सजा मिलती है पीड़ित को ही धमकी मिलती है अपराधियो को मुस्कुराता देखने वाला स्टेट हूं हा मैं उत्तर प्रदेश हूं

मोदी जी पिछले वादों पर क्यो नही लड़ रहे है?

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भारत ने 2014 में प्रचंड बहुमत देकर BJP को जिताया था और एक मजबूत सरकार इस विश्वास से बनाया था कि नई सरकार पुरानी सरकारों में जो कमियां थी उसे दूर करके देश को नई दिशा और दशा प्रदान करेगी । वर्तमान सत्तासीन पार्टी अपने 2014 के वादों पर कितना खरा उतरी उसका आकलन जनता को करना है और उसी पर वोट भी करना है वर्तमान में चुनाव चल रहे है और नेताओं के भाषण भी पूरे जोश में हो रहे है इन सब के बीच सबसे ज्यादा जो आशा थी लोगो को की अबकी बार चुनाव का पैटर्न बदलेगा और चुनाव पुराने स्वरूप से नए स्वरूप में होगा ।ऐसी आशा करना लाजमी भी है क्योंकि बहुमत देने के बाद ऐसा सोच जा सकता है, उससे भी ज्यादा इसलिए भी जरूरी था कि मोदी जी 2014 मे बदलाव के नाम पर ही वोट मांगे थे ,उस समय जनता त्रस्त थी तो उन्हें मोदी जी मे एक आशा की किरण दिखी की कुछ तो नया होगा लेकिन अगर वर्तमान में मोदी जी के भाषणों पर ध्यान दे तो हम क्या पाते है यही की जो मुद्दे भुनाकर मोदी जी सत्ता में आये थे उनको वो लगभग पूरी तरह से भूल से गये है जबकि अब तो समय था कि वो यह बताये की जो सरकार में आने के बाद से लगातार जिन योजनाओ का उन्होंने शिलान्य

।।अब तुझे जानने लगा हूं।।

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।।अब तुझे जानने लगा हूं धीरे धीरे से ही सही,तुझे पहचानने लगा हूं आया तो था यहां तेरे दीदार को लेकिन धीरे धीरे तेरा हो जाने लगा हूं तुमको देखकर तुममे खो गया हूं बस तेरा ही तेरा मैं हो गया हूं तेरे नैनो की मधुशाला में डूबकर खुद को खुद से भूल गया हूं तुझमे किसी का अक्स मैं खोजता हूं धीरे धीरे तुझमे कुछ ढूढ़ता हूं तुझसे दिल की हजार बाते कहने को पल पल तुझको पुकारता हूं अब इतना समझने लगा हूं तुझे मैं दिल से चाहने लगा हूं दिल की सम्पूर्ण गहराई से अब तुझे जानने लगा हूं।।

तुम आज भी याद आते हो

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।।तुम आज भी याद आते हो जब भी सुबह सुबह बच्चों को कच्ची नीद से जगाया जाता है जबरजस्ती से ही उनको नहलाया जाता है फिर ढेर सारा तेल चुपड़कर उनके बाल चिपकाया जाता है फिर स्कूल वाली आसमानी नीली ड्रेस में उन्हें स्कूल पहुचाया जाता है,तब ए बचपन तुम याद आते हो जब बच्चों को प्रार्थना की लाइन में लगते देखता हूं उस लाइन में एक दूसरे की पैंट खीचते देखता हूं टीचर से शरारत पकड़े जाने पर उनका सहम जाना देखता हूं फिर टीचर द्वारा पिटाई से बच जाने पर आंखों आंखों में मुस्कुराना देखता हूं,तब ए बचपन तुम याद आते हो जब होमवर्क की कॉपी भूलकर मासूम बहाने बनाना देखता हूं सवाल का जबाब न याद आने पर दोस्त का बगल से सही जबाब फुसफुसाना देखता हूं हल्की हल्की बातो पर एक दूसरे से रुठ जाना -मान जाना देखता हूं जब बच्चों को टिफिन से चोरी चोरी क्लास के बीच मे ही खाते देखता हूं जब उनको अपने दोस्त के टिफिन से शरारत में ही खाना निकालते देखता हूं एक दोस्त के पैसे से खरीदी नीली पीली टाफियां खरीदकर सबको बाटकर खाते देखता हू,तब ए बचपन तुम याद आते हो छुट्टी वाली घंटी की तरफ शाम को बेसब्री से देखना देखता हूं घंट

निराशा को आशा में बदलिए :पॉजिटिव सोचिये

आज के दौर में खुद को इस तनाव भरे माहौल में पॉजिटिव ऊर्जा से भरपूर रखना कोई आसान काम नही है।अपने चारों तरफ नजर घुमाइए तो बहुत से लोग ऐसे मिल जाएंगे जो छोटी छोटी बातों को लेकर निराश हताश बैठे है । उन्हें जिंदगी में अपनी इस हताशा से बाहर निकलने का रास्ता ही नही दिखाई देता है। खुद को हताश होने में काफी हद तक हम खुद जिम्मेदार है और हमसे ज्यादा हमारे आसपास का माहौल ज़िम्मेदार है ऐसा मैं केवल कह नही रहा हूं उसके मेरे पास पर्याप्त कारण भी है। आप पहले अपना बचपन याद करिये जब आप छोटे होते थे आपको हार जीत जैसे चीजो से बेफिक्र थे तब कुछ लोग रात में आपको कुछ ऐसी बकवास बाते बताकर डरा देते थे वो डर हमारे मन मे इतना गहरा प्रभाव छोड़ती थी कि बचपन से किशोर होते होते मन के किसी न किसी कोने में वो रात वाला डर घर कर ही लेता था जो कि अब जाकर पता चला कि अंधेरे से डरने जैसा कुछ भी नही है फिर आप अपना स्कूल के दिन याद करिये तब लोग आपके मन मे पास फेल और नम्बर ,क्लास में स्थान लाने जैसी चीजों के बारे में तुलना करते है कि तुम कम नम्बर पा रहे हो तुम्हारा कुछ नही हो सकता ,तुम बेकार हो और यह ड्रामा केवल बड़े क्लासो म

क्योकि वो माँ है

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मैं आज भी देर से आया था ,घर और मोहल्ले में लगभग सब सो गए थे सुनसान गली में अगर कोई चल रहा था तो वह मैं था और साथ मे कोई थी तो मेरी परछाई,जो कभी साथ चलती तो कभी नही ,ऐसा इसलिए कि गली की हर स्ट्रीट लाइट जल नही रही थी,घर पर आज भी रोज की तरह कोई जाग रहा था तो वो मम्मी थी मेरी, जानता तो था कि वो मेरे इंतज़ार में ही जाग रही है जो कि उनकी उनीदी आंखों से पता चल रहा था,फिर भी मैने पूछा कि मम्मी सो गई होती अभी तक क्यो जाग रही हो,आज फिर मम्मी ने अपनी आंखों की नीद को छुपाते हुए बोली कि नही बेटा वो नीद ही नही आती अब तो इस उम्र में वैसे घर मे हर कोई होता है लेकिन इंतज़ार अगर किसी को सबसे ज्यादा होता है तो वो माँ को ही होता है

YOUTUBE की दुनिया

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आज के दौर में जब दुनिया की अधिकांश जनसंख्या इंटरनेट से जुड़ गई है। आज हर कोई किसी भी छोटी से छोटी जानकारी के लिए गूगल और यूट्यूब की शरण मे जाने में जरा भी नही हिचकता । यूट्यूब और गूगल आन जनमानस की जिंदगी में आकर उनके जीवन को आसान बनाने के साथ उनके जीवन का हिस्सा बन गए है इस तेजी से बदलते दौर में यूट्यूब लोगो के जीवन का अहम हिस्सा हो गया है । यूट्यूब ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा लोग पलक झपकते ही जिस भी बात को जानना चाहते है उसके बारे में तुरंत जानकारी मिल जाती है । आज कल लोग यूट्यूब को शौकिया और अपने कैरियर के रूप में भी चुन रहे है वह चाहे शिक्षा के क्षेत्र में हो मनोरंजन के क्षेत्र में या कुकिंग के क्षेत्र में लोग अपना कैरियर के रूप में चुन रहे है यूट्यूब को कैरियर बनाना आज कल हर युवा का शौक है।आज के वक्त में जब इंटरनेट डेटा इतना सस्ता है और लोगो की आसान पहुच हो गई है सोशल मीडिया तक तो लोगो के मन मे कभी न कभी यह सवाल जरूर आता है कि क्यो न हम भी यूट्यूब पर किसी न किसी रूप में आये यूट्यूब आज के समय मे इतने तेजी से बढ़ रहा है और लोग इसे कैरियर के तौर पर इसलिए भी ले रहे है कि एक

डॉ भीमराव आंबेडकर : कुछ खास बातें

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आज भारतीय इतिहास के एक महान नेता ,समाजसेवी, दलित,पिछड़ो और महिलाओं को बराबरी का हक दिलवाने वाले  डा आम्बेडकर की जयंती है। आम्बेडकर जी का पूरा जीवन संघर्षो से भरा पड़ा है उनके जीवन से हर किसी को अपने हक के लिए लड़ने की सीख मिलती है ,उन्होंने अपने जीवन मे जो सामाजिक छुआछूत वाली बीमारी का सामना किया था बाद में उन्होंने उसे समाज से खत्म करने की पूरी कोशिश की उन्होंने हमेशा लोगो से धर्म के बारे में कहा कि मैं  केवल वही धर्म को मानता हूं जो स्वतन्त्रता,समानता और भाईचारा को सिखाए और वर्तमान परिदृश्य को देखे तो हमे ऐसे ही धर्म की जरूरत है जिस तरह से लोग धार्मिक कट्टरता की तरफ बढ़कर एक दूसरे के दुश्मन बन रहे है तो हमे ऐसे ही धर्म की जरूरत है जो सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा दे और समाज मे अमन और शांति प्रदान करे आम्बेडकर जी ने कहा है कि हमे ऐसी शिक्षा चाहिए जिससे चरित्र का निर्माण हो मन की शांति बढ़े बुद्धि का विकास हो और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो,अगर हम देखे हमे शिक्षा की जरूरत इसी के लिए ही है अगर चरित्र निमार्ण होगा बुद्धि का विकास होगा और हर इंसान अपने पैरों पर खड़ा होगा तो देश का विकास स्वतः

देखो तुम यू रूठा न करो

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।।देखो तुम यू रूठा न करो मुझसे नफरत झूठा न करो बस मुझको यू रिझाने खातिर देखो गुस्सा यू झूठा न करो। देखो तुम दिल यू ना तोड़ा करो कभी कभी मुझको देखा तो करो बस मुझको यू दिलासा देने के खातिर मुझसे मिलने यू आया तो करो। देखो तुम रात में ऑनलाइन आया तो करो मुझसे खुद के हाल सुनाया तो करो बस मुझसे हाल ए दिल कहने के खातिर देखो वाट्सअप चलाया तो करो। देखो तुम सुबह सुबह लेट आया न करो मुझसे इंतज़ार करवाया न करो बस मुझको यू चिढ़ाने खातिर देखो तुम औरो से बतियाया न करो। देखो मैं यू तुमको चाहता दिल से बहुत ही तुमको मानता हूं तुम भी कम से कम देखा तो करो देखो तुम यू रूठा न करो।।

BJP2014 में और BJP2019 में

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वर्तमान समय मे चारो तरफ बस एक ही माहौल छाया हुआ है वो है चुनाव बस केवल चुनाव,वर्तमान परिदृश्य पर निगाह फेरे तो हम क्या पाते है यही की राजनीतिक पार्टियां भले ही विश्व समुदाय से आगे निकलने की बात करती हो लेकिन चुनाव आते ही धीरे धीरे वो अपने पुराने रंग में वापस आ जाती है इसका आकलन आप इस बात से कर सकते है आप इस वक्त जब पार्टियों को जनता को अपना भविष्य का रोडमैप समझाना चाहिए तो वो लोग बस किसी तरह से जनता को धर्म ,जाति और राष्ट्र के नाम पर भटका रहे है वर्तमान सत्ता की जो पार्टी है उसका आप 2014 के भाषणों को सुने खासकर मोदी जी के तो आप पाएंगे कि तब इनके पास विजन था कि हम पुरानी सरकार से कुछ ज्यादा बेहतर करेंगे अब कितना बेहतर किये या नही किये यह आकलन आपको करना है यह मैं आप पर छोड़ रहा हूं,तब मोदी जी पुरानी सरकार पर दोष मढ़ने के साथ उदाहरण भी देते थे कि जो इन्होंने गलत किया उसे वो कैसे सही कर सकते है लेकिन फिर आता है2019 का चुनाव तब तक मोदी जी  पांच साल प्रधानमंत्री रह चुके है अब उन पर जनता को बताने के लिए केवल वादे और पुरानी सरकारों की नाकामियां नही है अब उनको आगे के विजन के साथ पांच साल

चुनावी साल :विपक्ष से सवाल

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चुनावी महासमर में लोग पूरी तरह से सराबोर हो गए है। नेता लोग वादों की घुट्टी पिला रहे है ,हर नेता खुद को सत्य और न्याय की मूर्ति बताने में लगा है और अपने विरोधी नेता और पार्टी को धूर्त और बेईमान साबित करने में पूरा जोर लगाए हुए है इसके पहले हम चुनाव में सत्ता पक्ष को वोट करने से पहले कौन से सवाल करे उस पर बात हो चुकी है तो आज हम बात विपक्ष की करते है कि आखिर उनसे क्या सवाल किए जाए वोट देने से पहले विपक्ष पार्टी सत्ता पक्ष पर सवाल दागती है ,सत्ता पार्टी के फैसले ,योजनाओ पर सवाल उठाती है जो कि जायज भी है कि अगर उनमे कुछ कमियां है तो उसे ध्यान में लाया जाए ,इस चुनाव में विपक्ष की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह जिन मुद्दों पर सत्तासीन सरकार को घेर रही है उससे खुद कैसे निपटेगी क्योकि सवाल उठना सबसे ही आसान काम है लेकिन सवाल का हल खोजना उतनी ही टेढ़ी खीर है वर्तमान में भारत की युवा पीढ़ी बेरोजगारी से सबसे ज्यादा प्रभावित है इसके लिए वर्तमान में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी जो कि कांग्रेस है उसे यह बताना चाहिए कि इससे कैसे निजात दिलाएंगे और उनके पास ऐसा क्या है जो इस सरकार से अलग है आज वर्तम

देखो फिर चुनाव आया

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।।देखो फिर चुनाव है आया नेताओ को आपके द्वार है लाया नेता लाये भर भर के वादे जनता जाने इनके इरादे नेता आए हमे लुभाने वादों में फिर हमे फसाने पांच साल फिर न दिखने वाले वादे को फिर भूलने वाले हमको स्वर्ग का झांसा देंगे खुद को स्वर्ग की आशा देंगे नही फिर लौट के आने वाले जीतकर चुनाव जाने वाले हमारा  वोट लेकर जाने वाले हमी पर रौब जमाने वाले हम लेंगे पूरा हिसाब नेता जो आये हमारे द्वार हम न अब बहकने वाले अपने मुद्दे समझने वाले देंगे हम उसी को वोट जो करे देश के लोगो का सपोर्ट देखो फिर चुनाव है आया नेताओ को आपके द्वार है लाया।।

BJP के संकल्प पत्र में क्या कुछ खास

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चुनाव के मौसम की सरगर्मी को बढ़ाते हुए भारतीय लोकतंत्र की वर्तमान सत्तासीन पार्टी BJP ने भी अपना घोषणा पत्र 'संकल्प पत्र' के नाम से जारी किया है।यदि वर्तमान दृश्य को देखा जाए तो हमारे देश की महत्वपूर्ण समस्या से ग्रस्त जो क्षेत्र है उनमें प्रमुख रूप से किसान ,शिक्षा,स्वास्थ्य,बेरोजगारी और स्वस्थ परिवेश आते है । स्वस्थ परिवेश भले ही अब तक मुद्दा न रहा हो लेकिन धीरे धीरे यह भी मुख्य मुद्दे में शामिल हो रहा है आज BJP ने अपना घोषणा पत्र जनता के सामने प्रकाशित किया है ,तो हम उनके मुख्य बातो पर बात कर लेते है 1.किसान- अगर हम देखे तो किसान इस चुनाव को प्रमुखता से सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहे है,भारत की एक बहुत ही बड़ी जनसंख्या किसान के रूप में देश मे निवास करते है तो जाहिर सी बात है हर कोई इन्हें लुभाना चाहेगा, पहली बात जो किसानों से की गई है वो यह है कि 2022 तक आय दुगुनी करेंगे तो यह तो पुराना ही वादा है इनका इस पर कायदे से ये यह बताये की पांच साल में कितना हुआ ,दूसरी बात किसान को सम्मान निधि देंगे इस पर तो कुछ कह नही सकते मिल जाये तो सहायता तो होगी लेकिन कही बाद में इसे भी जु

चुनावी साल: सत्ता पक्ष से सवाल

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चुनाव के साल में देखते देखते चुनाव की तारीख भी आ ही गयी । हर पार्टी के नेता से लेकर कार्यकर्ता तक पूरे जोश में है,हर कोई अपने नेता को भगवान बनाने में तुला है,हर नेता पूरी कोशिश में है कि जनता को कैसे अपने पक्ष ने लाया जाए,उसके लिए उनसे जो भी हो सकता है कर ही रहे है कागज के नाव पानी मे बहाए जा रहे है। तो भइया हम है जनता ,और जनता के नाते हमारा भी कुछ हक और जिम्मेदारियां है ,हमे उसे पूरी ईमानदारी से निभाना पड़ेगा क्योंकि हमें मौका पांच साल में एक ही बार मिलता है,तो आज हम वर्तमान सत्ता पक्ष को वोट करने से पहले क्या देखे आज हालात ज्यादातर सत्तापक्ष के लोगो का यह है कि वो आज भी या तो विपक्ष को कोस रहे है या समाज को बांटने में लगे है ,जबकि जिम्मेदारी उनकी यह है कि वो इन बातों पर अब चुनाव लड़े की 2014 में उन्होंने क्या वादे किए थे उनमें कितना हासिल हुआ वह जनता को बताए न कि इसमें लगे रहे कि उनका हर काम नेहरू जी ही रोक रहे है आरोप प्रत्यारोप तो राजनीति में होगा ही बात जायज है अगर अब भी राजनीतिक स्वरूप नही बदला तो कब बदलेगा ,क्या हम इसी में फसे रहेंगे की कांग्रेस ने गलत किया तो bjp भी करेगी

चुनावी माहौल: कांग्रेस के घोषणा पत्र में क्या कुछ खास

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आज देश की दो बड़ी पार्टियों में से एक कांग्रेस का घोषणा पत्र "हम निभाएंगे" के टैग लाइन के साथ जारी हुआ। इस घोषणा पत्र में काफी कुछ व्यवहारिक बाते भी है और जरूरी बातें भी है ।इसे पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि राहुल गांधी मजबूरी में या वो समझ गए है कि राजनीति का मुद्दा अब बदलना ही होगा।खैर कारण जो भी हो लेकिन इस घोषणा पत्र में किसानों की बात की गई ,युवाओ की बात की गई,बेरोजगारी की बात की गई,स्वास्थ्य की बात की गई ,और देखे तो जनता का मूलरूप से समस्या इन्ही क्षेत्रो में है तो आइए कुछ प्रमुख मुद्दों पर बात कर ही लिया जाए पहला जो बात मुझे खास लगी वो यह कि इन्होंने किसान के लिए अलग बजट की बात की है जो कि आज के हताश ,परेशान किसानों के लिए जरूरी भी है। किसानों को जरूरत है कि वो सरकारों के मुद्दों के केंद्र में है और उनपर विशेष काम करने की जरूरत है जिससे किसान न खेती छोड़े और न ही आत्महत्या करे, किसानों के कर्ज न चुका पाने की स्थिति में उनपर आपराधिक केस नही दर्ज होंगे जो कि बहुत ही बेहतरीन कदम है क्योंकि केस दर्ज करने के नाम पर कर्जदार किसानों का बहुत शोषण होता है दूसरी बात जो बेहद जर

जरा अपने सांसद से पूछिये 25 करोड़ का क्या किया?

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चुनाव का महीना चल रहा है । सब तरफ चुनावी सरगर्मी जोरो पर है । सब पार्टी नेता एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में व्यस्त है और हमारे लिए छोड़ते है बस फालतू की बहस हम है भइया जनता और हम हर साल अपने क्षेत्र से चुनते है एक सांसद वो इसलिए कि इनको हम चुनेंगे तो ये हमारे हित के लिए संसद में आवाज उठाएंगे और अपने सांसद निधि का हमारे क्षेत्र में खर्च करके क्षेत्र की समस्याओं से मुक्ति दिलाएंगे और वास्तव में होता क्या है कि साँसद जी जीतते है और आपको भूल जाते है ,लेते है एक बड़ी वाली गाड़ी और दो चार चमचे और निकल लेते है दिल्ली ,जो नेता जी आपको स्वर्ग का सपना दिखाए थे वो तो अब सपने में भी नही आते वो करते फिर अपने लिए स्वर्ग का जुगाड़,क्योकि कर तो वैसे भी कुछ नही सकते उनका पांच साल तो भइया अब आया है मौका जो सांसद जी पिछली बार आपके यहाँ से जीत कर गए थे वो दुबारा आ गए होंगे आपके बीच तो लगे हाथ आप अपने क्षेत्र के सांसद निधि का आपके सांसद महोदय ने क्या किया जरा पूछ लीजिये ,क्योकि जो 25 करोड़ मिला था उनको वो उनके लिए नही था वो आपके क्षेत्र के स्कूल ,कॉलेज,यूनिवर्सिटी ,सड़क ,यातायात ,अस्पताल,खतरन

चुनाव2019: हिन्दू -मुस्लिम मुद्दा फिर से

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आज महाराष्ट्र में अपने आदरणीय मोदी जी ने फिर से अपने प्रिय मुद्दे हिंदू मुस्लिम पर आ ही गये । उन्होंने बताया कि जहां से राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे है वहा पर हिंदू अल्पसंख्यक है इस तरह से मोदी जी फिर से हिंदू हिंदू करके हिंदू भावनाओ को अपनी तरफ मोड़ना चाहते है ,अब शुरू कर दिए है तो अब धीरे धीरे देश के चुनावी माहौल में हिन्दू और मुस्लिम का रंग घोलना शुरू कर ही देंगे । बात इतनी सी है यदि पूरा देश एक है और पूरे देश का एक ही संविधान एक है उसमें है कि देश धर्म निरपेक्ष है तो ऐसी बाते करना कहा से शोभा देता है कि यहां हिंदू कम है यहां मुस्लिम ज्यादा है इनका सीधा सा फंडा है कि किसी तरह से डर का माहौल बनाया जाए देश को बाटकर वोट लिया जाए। आदरणीय मोदी जी आपने तो सबका साथ सबका विकास का नारा दिया था तो अब यह बात कहा से कर रहे है यहां हिन्दू अल्पसंख्यक है विपक्ष धीरे धीरे ही सही जनता के वाजिब मुद्दे बेरोजगारी ,गरीबी ,अशिक्षा और अन्य मुद्दों पर बात करती दिख रही है । लेकिन तब तक सत्ता पार्टी लेकर आ गयी अपना पुराना हथियार, भाई साहब है सीधी सी बात अब तो आप भी पांच साल सरकार चला ही लिए है तो बेहतर ह

मैं और मेरी फिटनेस

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अगर कहू की मैं आलसी इंसान हूं । लोग आलसी होते है मैं बहुत ही बड़ा वाला हूं।शरीर अदरक जैसा कही से भी बढ़ रहा है लेकिन मुझे फर्क नही पड़ रहा है कि मैं क्यो बढ़ रहा हूं कही से भी मेरे फिट न होने की वजह है जो कि मुझे भलीभांति पता है फिर भी खुद को फिट होने के लिए कुछ करने के बजाय मेरे पास खुद को सही साबित करने के हजारों बहाने है उसमे पहला जो सबसे बड़ा है वह है मैं चीजो को टालने में बड़ा विश्वास करता हूं । कभी कभी लगता है यार सुबह सूर्योदय से पहले उठना चाहिए लोग कहते भी है कि सुबह उठने से आधा रोग यू ही कट जाता है ।यह बात मुझे बचपन से बताई जा रही है लेकिन मजाल है कि मैं की मैं कभी इस पर अमल कर लू मुझे लगता है ली यह फालतू है क्योंकि रोग तक पता नही लेकिन सुबह ही तो हमे नीद आती है वो भी शानदार वाली, जिसे miss तो हम कर नही सकते कोई और रास्ता हो तो बताओ दूसरी बात आती है जिम जाने की ।तो भाईसाहब मैं बता दू की जिम जाने के लिए चाहिए इच्छाशक्ति जो कि अपनी है बहुत ही कमजोर। सबसे बड़ी बात होती है जब जिम जाने की तो वैसे तो अपना दिमाग काम करना नही चाहता लेकिन इस बात पर वो भी चल जाता है तब अपने पास जिम को

पूर्व सैनिक तेजबहादुर जी का राजनीति में आना

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बनारस में चुनाव काफी दमदार होता ही जा रहा है । अभी किसानों द्वारा मोदी जी के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात कही गयी थी उसी के साथ एक और धमाकेदार घोषणा पूर्व  जवान तेजबहादुर जी द्वारा चुनाव लड़ने को लेकर की गई है बात अगर तेजबहादुर को लेकर की जाए तो यह सुखद होगा कि बनारस की जनता इनको संसद भेजे वो इसलिए नही की वो एक जवान रह चुके है ,उसका कारण यह है कि वो आपके बनारस की आवाज संसद में बखूबी बुलन्द करेंगे क्योकि जो इंसान सेना में रहकर उसके द्वारा हुई ज्यादतियों के खिलाफ बिना डरे मुखर हो सकता है वह आपकी और बनारस के लिए भी पूरे दम खम से लड़ेगा । साथ ही साथ मुझे लगता है कि जवानों को भी संसद में प्रतिनिधित्व मिलना ही चाहिए और जवानों के हक में एक जवान ही उनकी जरूरतों और परेशानियों के बारे में देश को और संसद को बता सकता है तेजबहादुर के बारे में अभी तक यह पता चला है कि वो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे है इसका एक फायदा यह होगा कि वह अपनी बात संसद में बिना किसी दबाव के रख सकते है । सेना से तो बहुत लोग आए लेकिन वो किसी न किसी पार्टी के होकर रह गए उनको जब बात सेना के लिए बोलने की आती है तो वो अपनी जगह ही पक्की क

।।कोई हमसे भी तो पूछो मैं क्या चाहता।।

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पापा चाहते बनू मैं IAS मम्मी चाहती बनू मैं टीचर अरे कोई हमसे भी तो पूछो मै क्या चाहता बहन चाहती बनू मैं पायलट भाई चाहता बनू मैं फौजी अरे कोई हमसे भी तो पूछो मैं क्या चाहता दादा कहते बनो किसान दादी कहती घर रहकर ही कर लो कुछ काम अरे कोई हमसे भी तो पूछो मैं क्या चाहता सब अपनी अपनी राय बताते मुझसे कोई न जानना चाहता अरे हमसे भी तो पूछो मैं क्या चाहता

धीरे-धीरे चुनाव असली मुद्दे की तरफ बढ़ रहा है

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वर्तमान चुनावी परिदृश्य में हर तरफ माहौल गर्म है,देश की दोनों बड़ी पार्टिया अपना अपना दाव खेल रही है। इसी बीच दो बड़ी बात हुई देश मे मिशन 'शक्ति' की सफलता के बाद मोदी जी का राष्ट्र के नाम संदेश और दूसरी राहुल गांधी का न्यूनतम आय देने की घोषणा न्यूनतम आय की घोषणा करके कांग्रेस भी फस गयी है वह घोषणा तो कर दी लेकिन यह बताने में उनके पसीने छूट रहे है कि आखिर इतने पैसे आएंगे कहा से ,दूसरी बात उसे लागू कैसे करेंगे ,इसका कोई वाजिब जबाब नही दे पा रहे है कांग्रेस वाले अब बात आती है मोदी जी की जो राष्ट्र के नाम संदेश देकर मिशन शक्ति के बदौलत एक बार फिर चिर परिचित अंदाज में चुनाव को देशभक्ति ,हिंदुस्तान पाकिस्तान, की तरफ मोड़ने की कोशिश कर रहे है ,लेकिन  DRDO और ISRO कोई आज की संस्था तो है नही कि आज पहली बार उन्होंने कोई परीक्षण किया हो इस परीक्षण पर काम तो पिछले कई सालों से चल रहा था जो अब आकर पूरा हुआ,यह मिशन शक्ति देश की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है तो इसे राजनीतिक मोड़ देने की क्या जरूरत है ,देश के वैज्ञानिक निसंदेह लगातार देश हित मे काम किये है ,जो ये राष्ट्र के नाम संदेस करके

!!तुम्हे बताना भी जरूरी था!!

कुछ कहना तुमसे जरूरी था फिर मिलना तुमसे जरूरी था ये जो तेरे हिस्से प्यार लिए फिर रहा हु मैं तुम्हे बताना भी  जरूरी था उस पीले सूट में तुम कितनी हसीन दिखती थी तुम्हे बताना भी  जरूरी था तुम्हा रे किसी एक भी दिन कॉलेज न आने पर,मैं कितना बेचैन होता था तुम्हे बताना भी तो जरूरी था तुम्हारे साथ वाली बस में जाने को मैं कितनी बसे छोड़ देता था तुम्हे दिखाना भी जरूरी था एकाएक तुम्हारा कॉलेज से गायब हो जाना,मुझे कितना रुलाया था तुम्हे बताना भी  तो जरूरी था अपने एकतरफा प्यार को उसकी मंजिल तक पहुचाना भी जरूरी था ये जो तुम्हारे हिस्से का प्यार लिए फिर रहा हूं मैं तुम्हे बताना भी  जरूरी था ।।

मैं कौन हूं ??

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मैं कौन हूं कभी कभी खुद से जब  मैं पूछता हूं क्या कोई जबाब  पाता हूं जिंदगी में अलग अलग किरदार निभाता हूं हर किसी के लिए अलग अलग बन जाता हूं मैं कौन हूं क्या खुद को जान पाता हूं अपनी माँ के लिए उसका राजा बेटा बन जाता हूं अपने पापा  का दुलारा लाला बन जाता हूं मैं कौन हूं क्या खुद को जान पाता हूं अपनी बहन का शरारती दोस्त बन जाता हूं अपने भाई के लिए खेलने का जरिया बन जाता हूं मैं कौन हूं क्या खुद को जान  पाता हूं दोस्तो के लिए उनका जिगरी यार बन जाता हूं गर्लफ्रेंड के शॉपिंग का क्रेडिट कार्ड बन जाता हूं मैं कौन हूं क्या खुद को जान पाता हूं अपने बॉस के लिए बधुआ मजदूर बन जाता हूं खुद को छोड़कर सबके लिए कुछ न कुछ बन जाता हूं पर काश मैं खुद के लिए कुछ बन पाता मैं कौन हूं ,काश खुद को जान पाता

प्रतियोगियों की सबसे बड़ी परेशानी?

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क्या भइया आप भी सरकारी नौकरी की तैयारी करते है ? या करते थे? तो आज हम इसी परेशान वर्ग की बात कर लेते है। जिसे हम कहते है प्रतियोगी अभ्यर्थी तो भइया क्या है न हम बड़े परेशान है अपने घर वालो से कम लेकिन बाहर वालो से ज्यादा । वो क्या है न हमारे गांव ,पड़ोस और रिश्तेदार है न उनको हमे चैन से रहने देना पसन्द ही नही होता ,जैसे ही मिलते है शांत सी ज़िन्दगी में उंगली शुरू।उ क्या होता है कि ई लोग पूरे मौके की तलाश में होते है जब तुमसे अकेले में मिलेंगे तब तो प्यार भरी बातें ,डंक तो इनका तब निकलता है जब तुम माँ बाप के पास बैठे होंगे तब इनका असली रूप आता है सामने ,तब ई पूछेंगे और बेटा कब आये,अउर अभी तक तैयारी ही कर रहे हो का, उसके बाद इनके किसी न किसी दोस्त का लड़का जरूर कही न कही कलेक्टर बना होता है तब ई बताएंगे कि हमारे फला मित्र के मित्र का लड़का 6 महीने में ही नौकरी में लग गया,तुम चार पांच साल से पढ़ ही रहे हो न इतना कह के ई भाईसाहब लोग तो चल देते है और फिर जो जली भुनी सुनने को मिलती है भाई साहब न, फिर वही माँ बाप जिनका प्यार बरस रहा होता है फिर उनको आ जाता है ego ,भाई साहब फिर जिसके लिए त

चौकीदार तेरे राज में ,बेरोजगार घूमे बाजार में

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चौकीदार शब्द सुनते ही सबसे पहले हमारे जेहन में जो ख्याल आते है वो यह है की ऐसा इंसान जो पूरी ईमानदारी और तल्लीनता से अपनी जिम्मेदारी निभाता है चाहे रात हो या दिन आज कल एक अलग ही नौटंकी दिख रही है सोशल मीडिया में हर बंदा चौकीदार ही बन रहा है,वैसे मैं चौकीदार होने को लेकर कोई ओछी सोच नही रखता की चौकीदार होना गलत है लेकिन भाईसाहब यह जिम्मेदारी आप निजी जिंदगी में कितना निभा रहे है सवाल यह है कि आप एक नागरिक है तो क्या आप अपनी नागरिक रूपी चौकीदारी कर रहे है ।क्या आपने एक भी बार अपने नागरिक धर्म को निभाया,की बस केवल फ़ेसबुक और ट्विटर पर नाम ही बदल रहे है              चलिए थोड़ी बात माननीय लोगो की भी करते है जो बाकी दुनिया के सभी जरूरी मुद्दे भुलाकर रातो रात खुद चौकीदार बन गए और देश को भी चौकीदार बना दिया।एक बात जो इस साल सबसे बड़ा सवाल था रोजगार का ,क्या उसकी चौकीदारी हुई है माननीय चौकीदार जी,आप बताइए इस साल तो आपने भरमार ही कर दिया फॉर्म पर फॉर्म भरवा कर लेकिन आप अपना पिछले पांच साल रोजगार पर कौन सी चौकीदारी की है अपने रोजगार तो दिए नही ,और जब सवाल आता है कि कितने रोजगार मिले आपकी र

भारतीय राजनीति किसान एक विकल्प

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सुबह सुबह एक खबर की किसानो का प्रधानमंत्री जी के विरोध में चुनाव लड़ने का एलान काफी अलग खबर है ! इससे लोग एक बात तो सोचेंगे ही की जनता केवल वोट देने के लिए ही नहीं है वह विकल्प भी है भारतीय राजनीति को ऐसा पेश किया जा रहा है की वर्तमान समय में वर्तमान पार्टी ही सर्वश्रेष्ठ पार्टी है ,और जनता के पास विकल्प का अभाव है ! यह पार्टियों की चाल होती है की खुद के लिए ऐसा माहौल तैयार किया जाये की जनता उनके जाल में फस जाये की उनके सामने कुछ खास लोगो को चुनने के अलावा कोई और रास्ता नहीं है !अगर आप वर्तमान राजनीति पर गौर करे तो पाते है की जनता के आवाज और मुद्दों को भटका कर कुछ ख़ास पारम्परिक मुद्दे फिर से मुँह उठाए खड़ा है इसी बीच एक खबर काफी नई और उथल पुथल मचाने वाली भी है की जिन कर्नाटक के किसानो ने 2017 में १०० दिन से अधिक समय तक धरना दिया था वो भी सरकार के नाक के नीचे ,लेकिन उनकी बातो को सुनने कोई भी नहीं आया वो अपनी बात प्रधानमंत्री तक पहुँचाना चाहते थे लेकिन जो प्रधानमंत्री जी भाषणों में किसानो के परम हितैषी होने का दावा करते है उन्होंने इनको नजरअंदाज किया आज जो खास बात आयी है की वो सब 11

प्रख्यात समाजवादी :राम मनोहर लोहिया

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सर्वप्रथम महान शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि आज 23 मार्च का दिन शहीद दिवस के साथ एक महान शख्स के जन्म के लिए भी जाना जाता है जिनका नाम राम मनोहर लोहिया था । राम मनोहर लोहिया को एक प्रखर वक्ता ,समाजवादी विचारधारा के प्रवर्तक ,भारतीय राजनीति को नए विचार और दिशा प्रदान करने वाले व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है। शुरू से ही अगर राजनीति में नेताओ के विरोध करने का साहस अगर किसी नेता ने दिखाया है तो लोहिया जी इनमे अग्रणी भूमिका में रहे है। चाहे बात नेहरू जी के 25 हजार रु खर्च करने की हो या इंदिरा जी को गूंगी गुड़िया कहने का साहस की हो या बात महिलाओ के हक में बोलने की की महिलाओं को सती-सीता होने की जरूरत नही है उन्हें द्रौपदी बनना चाहिए एक बात जो आज भी भारतीय राजनीति में सुनने को मिलती है की "जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नही करती" का आह्वान लोहिया जी ने कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए की थी एक बात उत्तरी भारत मे आज भी कही जाती है कि "जब जब लोहिया बोलता है,दिल्ली का तख्ता डोलता है" बात अगर उत्तर प्रदेश के बारे में देखे तो मुलायम सिंह को पहली बार टिकट लोहिया जी ने दि

23 मार्च :शहीद दिवस ,शहीदों को नमन

आज 23 मार्च है यह दिन भारत के इतिहास में शहीदों को नमन करने का दिन है । इस दिन को ही भारत के तीन आजादी के मतवाले भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर चढ़ा दिए थे । आजादी के इन तीन महान क्रांतिकारियों के बलिदान के याद में 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाते है देश को आजादी इन क्रांतिकारियों के इतने महान लोगो के बलिदान के बाद हमे मिली है । इतने महान लोगो ने खुद को कुर्बान करके जो आजादी हमे सौपी है उसका सम्मान करना हर देशवासी का जरूरी कर्तव्य है।हमारा कर्तव्य यह है कि वीर सेनानियों ने जो सपना देखा था देश के लिए उसे हम पूरा करते हुए सदैव वीर और महान क्रांतिकारियों के प्रति हम कृतज्ञ रहे भारत के वीर क्रांतिकारियों के बलिदान को याद करते हुए ,उनको विनम्र श्रद्धांजलि

क्या हम केवल वोटर बन कर रह गए है?

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चुनाव आते ही हमारे देश की पार्टिया हमें केवल वोटर की तरह क्यों समझती है ! ये पार्टिया देश के नागरिको का  जैसे तैसे वोट लेने के लिए ही इस्तेमाल करना चाहती है ! देश की जो ज्यादातर आबादी है उसको हर उम्मीदवार केवल वोटर ही देख रहा है वो यह चाहते है की वोट इनको मिल जाये उससे ज्यादा इन पार्टियों को किसी चीज से मतलब नहीं है  इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है की हमारे जमीनी मुद्दे  भी नेता के मुद्दे बन ही नहीं रहे है देश के किसान की बात कोई कर रहा है। किसान की फसल का उचित दाम कैसे मिलेगा इस पर बात हो रही है।  किसान आत्महत्या क्यों कर रहा है इस पर किसी ने आवाज उठाई की हमने किसान के आत्महत्या जैसे गंभीर समस्या पर काम करूँगा और रही बात वर्तमान सरकार की तो ये लोग तो इतने गंभीर समस्या को शायद समस्या समझते ही नहीं क्योकि किसान के लिए क्या किया इस पर केवल विज्ञापन ही छपते है जमीनी हकीकत क्या है इस पर कोई बात ही नहीं कर रहा है। किसान जीवन बीमा से क्या मिला किसान को आखिर जिन कंपनियों को इसकी जिम्मेदारी दी गयी थी उनका ऑडिट हुआ कि उन्होंने किसान से कितना लिया और कितना भुगतान किया हमारे यहां पा

जल बचाये आने वाले कल के लिए: विश्व जल दिवस

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आज 22 मार्च है,यह वह दिन है जब पूरा विश्व जल को बचाने के लिए एक साथ प्रयास करने पर विचार करता है की जल संरक्षण के लिए क्या किया जाए कि हमारा आने वाला कल जल बिन सून न हो जाये 1992 में ब्राजील में हुए पर्यावरण तथा विकास के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में सर्वप्रथम जल दिवस मनाने पर विचार हुआ।1993 से जल दिवस मनाया जा रहा है । एक दिन साल भर में जल दिवस से क्या होगा लेकिन यह एक दिन इसलिए कि लोगो का ध्यान इस पर जाए और साथ ही साथ इस बात पर भी विचार हो सके कि हम जल संरक्षण के दिशा में और बेहतर क्या कर सकते है, जल को हम कैसे कम से कम प्रदूषित कर सकते है ।कैसे हम कम से कम जल का दोहन कर सकते है जल दिवस का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि कैसे हम अधिकतर जनसंख्या को साफ जल प्रदान कर सकते है यदि अपने परिदृश्य पर नजर दौड़ाये तो हम क्या पाते है कि लोग पानी गंदा करने ,फालतू बहाने ,जल दोहन करने में तो लगे है लेकिन उन्हें जल की संरक्षित करने की कोई चिंता ही नही है ,जल का भंडार सीमित है जिस हिसाब से जनसंख्या बढ़ रही है जल उपलब्धता लगातार घट ही रही है लोगो का अनुमान तो यह है कि आने वाले समय मे जल के लिए विश्व

चुनावी साल: नए मुद्दे क्यो नही

यह साल चुनावी है ,पूरा का पूरा परिवेश चुनावी हो गया है,मैं भी चुनावी, तू भी चुनावी,और ये सारा देश ही चुनावी,चुनाव से बड़ी आशा थी कि अबकी बार लोगो के और देश के मुद्दे कुछ अलग होंगे लेकिन अबकी बार भी देश को निराश ही हाथ लगी देश के मुद्दे जो कुछ दिन पहले तक सर उठा भी रहे थे कही न कही दब से गये ,देश को कही न कही से फिर उन्ही पुराने मुद्दों के तरफ मोड़ दिया गया जबकि कायदे से देखे तो बेरोजगारी देश के लिए बड़ा मुद्दा हो सकता था लेकिन जो बेरोजगार है वही बेरोजगारी को चौकीदारी जैसे बेतुकी बातो के चक्कर मे भूलकर चौकीदार बने फिर रहे है। दूसरा जो विपक्ष है वो चोर साबित करने में भिड़ा पड़ा है आपके लिए कितने यूनिवर्सिटी ,कॉलेज ,स्कूल और रिसर्च सेंटर खोले गए यह सवाल नही हो रहे है सवाल यह हो रहा है कि चुनाव में हिंदू जीत रहा है या मुसलमान आपके लिए कितने एम्स या अन्य हॉस्पिटल बने ,कितने कैंसर सेंटर बने यह हमारा मुद्दा नही है हमारा मुद्दा है कि देश मे वोट का बंदरबाट कैसे हो प्रदूषण बड़ी समस्या बन रही है वो पर्यावरण ,जल,थल जिसका भी हो हम यह सवाल नही पूछ रहे है कि इनके लिए क्या हुआ और क्या होगा अगर हम अपने