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Showing posts from November, 2019

स्वास्थ्य और शिक्षा तक सबकी पहुच आखिर कब?

                        देश में आजकल एक दौर चल रहा है शिक्षा को लेकर जहां एक तरफ हर सरकारी संस्थाओं का नीजीकरण के तरफ सरकार अपना कदम बढ़ा रही है वही शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरत को भी सरकार किसी न किसी रुप में लोगों की पहुच से दूर करने की लगातार कोशिश कर ही रही है               अपने देश में आज भी एक बड़ी जनसंख्या रहती है जिनकी आमदनी इतनी ही है कि वो बस दो जून की रोटी का जुगाड़ कर लेते है या कभी कभी ऐसा होता है कि वो भी नसीब नही होता है उनके लिए बस कमाना खाना ही एकमात्र जरिया होता है जीना है तो कमाना है यदि काम करेगें तभी दो जून की रोटी का जुगाड़ होगा तो ऐसी स्थिति में उन जैसे परिवारो के बच्चो के लिए शिक्षा जैसी चीजे किसी सपने से कम नही होती है उनके दिमाग मे शिक्षा को लेकर कुछ होता ही नही ऐसे परिवार में अगर कोई बच्चा पैदा होता है तो यदि वह पढना चाहे तो कैसे पढ़ेगा यदि सरकारी संस्थाओं की फीस भी प्राईवेट संस्थाओं की तरह आसमान पर पहुचने लगेगी तो               वैसे भी गिने चुने ही संस्थान है जो कि नाम मात्र की फीस लेकर अच्छी शिक्षा प्रदान करते है उनसे अच्छी अच्छी प्रतिभा पैदा होती है अगर इ

प्रयास से कमी का पता भी चलता है

      प्रयास हमें हमारी कमियों से भी रूबरू कराती है यह पता मुझे भी आज एक बहुत ही छोटी सी घटना से हुयी तो मुझे लगा कि आप लोगों से बात करनी चाहिए तो लिख दिया है तो बात यह है कि मेरी हिन्दी की टाईपिंग की गति बहुत ही धीमी और त्रुटिपूर्ण थी जो कि मै लगातार कोशिश के बावजूद इस कमी से उबर नही पा रहा था लेकिन करे भी तो क्या करे बस लगातार यह खोज रहा था कि क्या कमी है कि मुझे वह कमी मिल नही रही है बस विश्वास इतना था कि आज नही तो कल मै इसमें कामयाब जरूर हो जाउगा क्योकी बचपन से यह सुनते आया हू कि अगर मेहनत अनवरत है तो कमी धीरे धीरे ही सही गायब जरूर हो जाती है     तो आज की घटना से आपको रूबरू कराता हू कि मै आज जब मैं टाईपिंग करनी शुरू की तब तो मेरा मन बहुत ही ज्यादा शांत था जिसके फलस्वरूप मेरी गति बहुत ही सही हो रही थी साथ ही साथ होने वाली त्रुटि में भी बहुत ही ज्यादा सुधार था       पहले और आज के प्रयास में बस इतना अंतर था कि आज जब मैं टाईपिंग कर रहा था तब मै बहुत ही शांत दिमाग से कर रहा था अन्य दिन में जब मैं टाईपिंग करता था तो उंगलियां बाद में चलती थी और दिमाग पहले ही भागता रहता था इससे पता चल

लोकतंत्र में सवालों के गोल-मोल जबाव

                     विश्व का सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करते है हम और हमारी सरकारे, पर जब बात वाजिब सवालों का आता है तो क्या हम वो सब हक पाते है जो वास्तव में एक लोकतांत्रिक शासन या देश के लोगो को वाकई मिलना चाहिए । यह एक सोचने वाली बात है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में देश के हक में क्या हो रहा है उसमें जनता को ही बाहर का रास्ता दिखला दिया जा रहा है उसे बस आर्डर के माध्यम से पता चल जाता है कि सरकार यानी की जो बस कुछ लोगो में रह कर जीवन जी रही है उसने आपके लिए कुछ नियम या सौदा कर लिया है आपको कल से उसे मानना है आप चाह कर या तो चुप रहे या चिल्ला ही ले कौन आपकी बात  को सुनने को तैयार है आज के दौर में हर प्रशासन का दुरप्रयोग होने से सरकार नही हिचकती है         हालात यह है कि आम जनता की आवाज तो सुनने का प्रश्न  ही नही बनता और जो कुछ लोग सरकार से आँख में आँखे डालकर सवाल कर ऱहे है उनपर इतनी पाबन्दी लगा दी जा रही है या तो वे चुप हो जाए या कानून के द्वारा या तो जान के डर से अपना मुँह बन्द करने पर मजबूर है        आज दौर में जब रहकर एक एक चीज को देश के विकास के नाम पर निलाम किया जा रहा